हमारे बहुत से कर्मों का फल जब पक जाता है, तब
उन्हें खाने की बारी आती है. यह बात भिन्न है की सभी फल मीठे नहीं होते. बहुत से
कडवे भी होते है पर खाने पड़ते है. मनुष्य को ये फल रोते-रोते खाने पड़ते है. यह
चुनाव तुम्हारे हाथ में है कि तुम्हें ये फल रोते हुए खाने है अथवा हँसते हुए.
जिसने भी दुनिया में देह धारण किया है उसको इस संसार में सुख-दुःख, हानि-लाभ ,
जीत-हार, मान-अपमान, सब कुछ भोगना पड़ा है. उसको शारीरक और मानसिक कलेश का सामना
करना पड़ता है. प्रत्येक व्यक्ति, जिसने इस संसार में जनम लिया, वह रोया, गिडिया
है. उसने लोगों के व्यंग्य्वानों का सामना किया है. संसार के शब्द वाणों को उसने
झेला है. दुखों के थपेड़ों से उसका शरीर जर्जर हुआ है|
सारे शास्त्र कहते है की कर्म ही बंधन के कारण
हैं. जब आप कर्म करते है तो बंधन के जाल में बंध जाते है. भगवान् कृष्ण ने संसार
को एक और विज्ञान दिया. उन्होंने कहा की कर्म बंधन का कारण नहीं बल्कि आसक्ति बंधन
का कारण है. यदि किसी कर्म में आसक्ति हो गई तो वह बंधन का कारण बनेगी. इसलिए कहते
है की कर्म करो लेकिन निष्काम भाव से करो. अच्छे कर्म का अच्छा फल और बुरे कर्म का
बुरा फल. निष्काम कर्म करते रहोगे तो बंधन में नहीं जाओगे. इस विज्ञान को भली
भांति समझो.
जो भी कर्म आप करते है, उनके बीज उनकी समृति आपके
चित में बैठ जाती है. आगे चलकर यही समृति फल बनकर सामने आती है आपके शरीर की
ग्रंथियां भी आपके स्वभाव के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. ग्रंथियों
से जो स्त्राव निकलता है, उसके आधार पर आप कभी गुस्सा कर जाते है, कभी द्वेष से
ग्रसित हो जाते है. ग्रंथियों से प्रभावित होकर दूसरों को हानि पहुँचाने की बातें
सोचने लगते है. हमारे भाग्य का प्रभाव 40 % आपके कर्म है और 20% कृपाओं का
प्रभाव है | भगवान् की पूजा करते है, किसी गुरु का संग करते है दुर्भाग्य को घटाने
के लिए कर्म और पुरुषार्थ के द्वारा सुभाग्य में बदला जा सकता है |
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