सज्जनता तो
इस बात में है की हम सारी स्थितियों को देखकर भी अपने-आपको कीचड़ से ऊपर उठाये रखे.
अगर हम कीचड़ से बच सकते है और ऐसी स्थिति पैदा कर
सकते है, जैसे कमल कीचड़ में खिला हुआ है. तो समझ लेना, हम स्वर्ग में जी
रहे है, नरक में नहीं. किसी के साथ यह स्वर्ग चलता है. दुनिया में जीता है है तो
स्वर्ग जैसी स्थिति में रहता हुआ . दूसरों को बांटेगा तो स्वर्ग का वातावरण बांटता
है.
अपने स्वर्ग
को भी स्वर्ग बनाने की कोशिश कीजिये और यदि आपके पास नरक है, उसकी पीडायें है तो सहज
भाव उसकी पीड़ा को हँसते हुए मुस्कान के द्वारा अपने स्वर्ग को उपस्थित करने की
कोशिश कीजिये. दुःख को भी यह नहीं मानना की यह दुःख है. यह मानना की कडवी दवाई
पीते हुए जैसे थोड़ी देर के लिए अनुभूतियाँ होती है दुःख की प्रतिकूलता की. लेकिन फिर भी आप सह जाते है
और कडवी दवा इसलिए पी जाते है की थोड़ी देर का दर्द सही, थोड़ी देर की प्रतिकूलता सही,
लेकिन अँधेरे के पार सुख की किरणें चमक रही है . सुख का दिन निकलने वाला है.
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