आप अपने कर्म को
कर्मठता से करो, दूसरों की निंदा करके अपना समय और ऊर्जा बर्बाद मत करो. लक्ष्य को
याद रखना और सूर्य एवं चंद्रमा की तरह नियम और मर्यादा में रहते हुए गतिमान हारें.
हर प्रभात को नमन करते हुए अपने प्रभु को सूर्य की ओर उन्मुख होना क्योंकि प्रभात
वंदन जरुरी होता है. सूर्ये को अपना आदर्श मानकर प्रणाम करना. सूर्य के सामने खड़े
होकर प्रार्थना की जाती है....
हे प्रभु! तू तेज पुंज है, मुझे भी तेजस्वी बना. हे
सूर्यदेव ! तेर आने के बाद चाँद सितारे कोई दिखाई नहीं देते. आसमान में केवल आप ही
दिखाए देते है और आपका ही राज पूरी धरती पर होता है. मुझे भी इतना तेजस्वी बना की
मैं जहाँ भी जाऊं मेरा तेजस्वी रूप चारों तरफ फ़ैल जाए लेकिन मैं प्रकाश देने वाला,
फूलों को खिलाने वाला, सबको गतिमान करने वाला बन जाऊं, किसी की ख़ुशी को छिनने वाला
न बनूँ. अगर सुख आए तो दुख को याद
करो और दुख आए तो सुख की याद आंनी चाहिए। इस तरह होनी चाहिए कि दुख के अंधेरे के
बीच उजाले की किरण सुख, मेरे
जीवन में आएगा यह याद रखना। सुख के क्षण में यह जरूर याद रखना चाहिए
कि पता नहीं हमारे कारण का कुपरिनाम कब सामने आए? कुछ पता नहीं जीवन किसी तरह से चले? इसलिए हमे
प्रभु का कृतज्ञ रहना चाहिए और उनका धन्यवाद करते रहना चाहिए। उनकी भक्ति
करते रहना चाहिए। भगवान से कभी विमुख नहीं रहना चाहिए। प्रभु की निरंतर याद करे। कृतिज्ञता से प्रभु की प्राथना करे।
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