नवरात्रों में भगवती दुर्गा की प्रसन्ता एवं कृपा प्राप्ति के लिए साधकों द्वारा विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है. सप्तशती सात सौ शल्कों का संग्रह है और यह तीन भागों अथवा चरितों में विभक्त है. प्रथम चरित में ब्रह्मा ने योगनिद्रा की स्तुति करके विष्णु को जागृत कराया है और इस प्रकार जागृत होने पर उनके द्वारा मधु-कटैभ का नाश हुआ है.
नवरात्रि के समय, सर्वप्रथम मन की अशुद्धियों को दूर करने के लिये माँ दुर्गा का आवाहन किया जाता है। इस प्रकार, पहला कदम लालसा, द्वेष, दम्भ, लोभ आदि प्रवृत्तियों पर विजय पाना है। एक बार, आप नकरात्मक आदतों और प्रवृत्तियों को छोड़ देते हैं, तो अध्यात्मिक मार्ग पर अगला कदम अपने सकारात्मक गुणों को बढ़ाना व बलशाली बनाना होता है। इसके पश्चात्, उत्कृष्ट मूल्यों व गुणों और समृद्धि को विकसित करने के लिये माँ लक्ष्मी का आवाहन किया जाता है। अपनी सभी नकारात्मक प्रवृत्तियों के त्याग कर लेने और सभी भौतिक व आध्यात्मिक संपन्नता की प्राप्ति के पश्चात्, आत्म के सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति हेतु माँ सरस्वती का आह्वाहन किया जाता हैं।

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