जो
पुरुष ममता रहित,नित्य संतुष्ट,स्वतंत्र और अनंत शक्ति वाला
है,जो सब भक्तों में स्नेह संपन्न और कृपालु तथा हास्यपूर्ण सुखद वाणी
बोलता है, जो राग, द्वेष ,भय ,क्लेश ,दंभ अहंकार से रहित होकर नित्य नैमित्तिक तथा आनंदित काम्य कर्म में रत है,जो देव ईच्छा से प्राप्त आय से संतुष्ट है, ऐसा शुभ
लक्षणों से युक्त उत्तम पुरुष ही ब्रह्म ज्ञान की दीक्षा के योग्य गुरु है।
आगे कहते हैं पाप कर्म वाले लोग गुरु को मनुष्य रूप में देखते हैं।परंतु पुण्य कर्मों वाले लोग श्री गुरु को शिव रूप में देखते हैं। साक्षात परम तत्व श्री गुरु को नेत्र के सामने प्रत्यक्ष रहते हुए भी,भाग्यहीन मनुष्य नहीं देखते जैसे अंधे लोग उदय हुए सूर्य को नहीं देखते।
गुरु ही उपदेशक रूप को ग्रहण करके जीव के बंधनों को जड़ से काट कर परम पद को प्राप्त कर आते हैं क्योंकि सबके ऊपर अनुग्रह करने वाले करुणानिधि ईश्वर ही आचार्यत्व धारण करके दीक्षा द्वारा जीव को मुक्ति प्राप्त करते हैं। वही शिव गुरु रुप में स्थित होकर पूजा ग्रहण करते हैं और एक रूप ग्रहण करके संसार बंधन का नाश करते हैं।
आगे कहते हैं पाप कर्म वाले लोग गुरु को मनुष्य रूप में देखते हैं।परंतु पुण्य कर्मों वाले लोग श्री गुरु को शिव रूप में देखते हैं। साक्षात परम तत्व श्री गुरु को नेत्र के सामने प्रत्यक्ष रहते हुए भी,भाग्यहीन मनुष्य नहीं देखते जैसे अंधे लोग उदय हुए सूर्य को नहीं देखते।
गुरु ही उपदेशक रूप को ग्रहण करके जीव के बंधनों को जड़ से काट कर परम पद को प्राप्त कर आते हैं क्योंकि सबके ऊपर अनुग्रह करने वाले करुणानिधि ईश्वर ही आचार्यत्व धारण करके दीक्षा द्वारा जीव को मुक्ति प्राप्त करते हैं। वही शिव गुरु रुप में स्थित होकर पूजा ग्रहण करते हैं और एक रूप ग्रहण करके संसार बंधन का नाश करते हैं।
गुरु के द्वारा ही तुम ईश्वर से मिलोगे।।ॐ हरि ओम जी ॐ
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