भगवत गीता प्रवचन
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की उचित परिमाण में भोजन,नींद तथा जागरण में संतुलन और व्यवस्थित मर्यादित दिनचर्या वाला व्यक्ति का जब योग सिद्ध हो जाता है। तो आदमी दुख कष्टों से मुक्ति पाता है इसमें सबसे पहले भोजन का वर्णन किया गया क्योंकि यह हमें ऊर्जा देता है, लेकिन जितना भोजन आवश्यक है उतना ही उसका पचना भी आवश्यक है।मांसाहारी जीवो की आंते छोटी होती हैं। इसलिए वहां पाचन ठीक से नहीं हो पाता। अतः शाकाहार शक्ति देने वाला भोजन ग्रहण करना चाहिए।फैट से युक्त भोजन को कम मात्रा में लेना चाहिए हमे शाकाहार होना चाहिए क्योंकि यह फैट अगर ऊर्जा में रूपांतरित हो जाता है। तब तो ठीक है लेकिन जब वह बिना उपयोग किए हुए बचा रह जाता है तो शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जमा हो जाता है इसके लिए भोजन ढाई घंटे के अंतराल से करते हुए 6 बार करना चाहिए।ध्यान देने वाली बात है कि खाने के साथ फल या मीठा लेने से बचना चाहिए। वर्तमान समय में कीटनाशक दवाओं का उपयोग करते हुए लोग केवल ज्यादा पैसा कमा कर अपना प्रदर्शन और वर्चस्व दिखाना चाहते हैं। यहीं पर उनकी दया और सहानुभूति समाप्त हो जाती है और उनमें धन का अहंकार आ जाता है वह अपने वैभव से ही अपने उन्नति को जोड़ते हैं।भोजन के बारे में कहते हुए गुरुवर ने बताया कि सफेद चीजों से बचना चाहिए। जैसे नमक, चीनी, मैदा यह स्वाद में अच्छा अवश्य होता है लेकिन उतना ही स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है। हमें ध्यान में उतरने के लिए आहार ,जल ,जब तक संतुलित नहीं होगा। तब तक जीवन परिवर्तित नहीं होगा।
आहार-विहार आमोद, प्रमोद इन सब में संतुलन अवश्य होना चाहिए। संवाद तक की बात तो ठीक है। लेकिन विवाद की स्थिति से बचना चाहिए। ढोल ,पर्वत और युद्ध सुनने में अच्छा लगता है। लेकिन उसका परिणाम बहुत भयावह होता है। इसलिए संगति, कर्म को संतुलित रूप में ही रखना चाहिए।
आप स्वयं अपने को समझें। तब दूसरे के साथ इसी तरह का व्यवहार करें। जिससे आपका कर्म, लोगों के लिए सुखदाई हो। आपका कर्म तभी आदत में परिवर्तित होता है। जब उसका अभ्यास शुरू होता है इसके लिए ध्यान के 30 दिन और आदतों के लिए 15 दिन का चुनाव करना चाहिए। जागने और सोने में भी मर्यादा होनी चाहिए। कम से कम 6 घंटे की नींद आवश्यक है। जिसमें 2 घंटे की तीन चरण की नींद होती है। जिसमें गहरी नींद , स्वप्न और वापसी की स्थिति आती है इसके बाद, जीवन में व्यवस्थित और विकास कार्य आरंभ होता है।
हमें दुख से बचने के लिए, जीवन में महत्वपूर्ण ,योग, संतुलित आहार तथा सधी हुई व्यवहारिक जीवन शैली ही विकास का पाथेय है
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