जिसका
वेश शुद्ध वस्त्र से सुशोभित और मनोहर हो,जो
शारीरिक सब अवयव से सुंदर तथा शुभ लक्षण संपन्न हो,जो प्रसन्न वदन हो,शास्त्र के सिद्धांत के
अनुकूल और प्रतिकूल विचार में विचक्षण हो,जो इशारे से
ही तत्व को समझ सके, जिसके कथन से कठिन से कठिन विषय
भी सहज ही समझ में आ जाए और भ्रम संशय दूर हो, ऐसा
उत्तम पुरुष ही तत्व ज्ञान की दीक्षा का उपयुक्त गुरु है।
जिसकी दृष्टि बाहर रहते हुए भी लक्ष्य अंतर में होता है,जो सर्वज्ञ एवं देशकाल को जानने वाला त्रिकालदर्शी है,सिद्धियां जिसकी आज्ञा में है।जिस किसी को जो आज्ञा देता है सो सिद्ध होती है,जो पुरुष कृपा करने और दंड देने में समर्थ है और अपना समर्थन जब चाहे दे कर ले सकता है।जिसकी दृष्टि आज्ञा चक्र में स्थित रहती है,जो आत्म सामर्थ से दूसरों से दूसरों में शक्ति संचार करता है एवं ज्ञान का बोध कराता है।जो शांत है,सब जीवो पर दया करता है,जो जितेंद्रीय है(सभी इंद्रियां जिस के वश में है)।जो सब कामों में अपना प्रथम स्थान रखता है,अति गंभीर है,पात्र अपात्र की विशेषता को जानता है,जो साधु के भूषण सद्गुणों से भूषित है,ऐसे उत्तम पुरुष ही योग दीक्षा के लिए योग गुरु है।।
जिसकी दृष्टि बाहर रहते हुए भी लक्ष्य अंतर में होता है,जो सर्वज्ञ एवं देशकाल को जानने वाला त्रिकालदर्शी है,सिद्धियां जिसकी आज्ञा में है।जिस किसी को जो आज्ञा देता है सो सिद्ध होती है,जो पुरुष कृपा करने और दंड देने में समर्थ है और अपना समर्थन जब चाहे दे कर ले सकता है।जिसकी दृष्टि आज्ञा चक्र में स्थित रहती है,जो आत्म सामर्थ से दूसरों से दूसरों में शक्ति संचार करता है एवं ज्ञान का बोध कराता है।जो शांत है,सब जीवो पर दया करता है,जो जितेंद्रीय है(सभी इंद्रियां जिस के वश में है)।जो सब कामों में अपना प्रथम स्थान रखता है,अति गंभीर है,पात्र अपात्र की विशेषता को जानता है,जो साधु के भूषण सद्गुणों से भूषित है,ऐसे उत्तम पुरुष ही योग दीक्षा के लिए योग गुरु है।।
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