श्रीगुरुमहाराज अमृतवचनों में फरमाते है .
श्वास भर कर उच्चारण करे ॐ शांत होते जाइए . माथे को ढीला छोडिये, महसूस करें की परमात्मा के शांत साम्राज्य में मैं प्रविष्ट हो रहा हूँ. शांति की लहरें वर्षा की बूंदों की बौछारें की तरह मुझे अन्दर तक भिगो रही है. आँख बंद रखे, शांत होते जाए. कोई विचार नहीं, कुछ भी नहीं सोचेंगे. दूसरी बार फिर फेफड़ों में श्वास भरेंगे. इस बार सुर थोडा सा ऊँचा होगा, पतला होगा और पवित्रता, प्रेम से हृदये को भरेंगे. मस्तिष्क को सुझाव देंगे की मैं प्रभु के चरणों में प्रेम और पवित्रता से भरपूर हो रहा हूँ. ऐसा सुझाव देकर मस्तिष्क को शांत करते जायेंगे.

हृदये में भगवान् के प्रति प्रेम जगाते हुए मन, मस्तिष्क और आत्मा को पवित्रता से भरपूर होते हुए महसूस करे निर्विचार हो. आनन्द की अनुभूति करें. चेहरे पर आनंद का भाव लाये. मस्तिष्क को सुझाव दे की मैं आनंद रस से परिपूर्ण हो रहा हूँ. मेरे अन्दर आनंद आ रहा है. घर में आप 5 -5 मिनट एक एक बार में ही देर तक बैठे रहे जितनी देर तक आप शांत होकर बैठे रहे, अभ्यास बढ़ाते जाना. एक ही आसन पर 40 मिनट तक बैठ सकते हो तो अच्छा होगा. जब आप अपने अन्दर आनंद बनाने के लिए अन्दर ही अन्दर ॐ बोलोगे तो बहार
सिर्फ ॐ की
ध्वनि गूंजेगी और आँखें बंद करके तीन बार ऐसे करते जाये. फिर आँख बंद करके
आनंदित होने की कोशिश करिए की चेहरे पर आनंद है और आनंद शांति है.
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