आपके
विचारों में, मस्तिष्क में, स्मृतियों में न जाने
क्या-क्या भरा हुआ है? अक्सर वह सब चलने लग जाता है, जो बिल्कुल भी अच्छी बात
नहीं है। ये जो मन है ना? इसकी आदत है पृष्ठ-पीसन करना, पीसे हुए को बार-बार
पीसना। मन पर अगर कोई चोट लगी हुई हो तो आप देखेंगे कि मन बार-बार उसी को याद
दिलाएगा, वह उसे बार-बार दोहराएगा। कोई चीज आपको परेशान कर रही हो तो
आप देखना, मन उसी को आपके सामने लाकर के रखेगा।

चक्की में एक बार पीस दिया जाये तो आदमी कहता कि चलो पिस गया और आटा तैयार हो गया; लेकिन हमारा मन तो ऐसा विचित्र है कि जिस आटे को पीस लिया, उसी को दुबारा फिर पीसेगा।फिर रुकेगा नहीं, तीसरी बार फिर पीसेगा, एक बार नहीं दो बार नहीं, तीन बार नहीं, सौ बार नहीं; वह हजार बार उसी को पीसेगा। मन की यह पिसाई जो है ना? उस वस्तु का ऐसा रूप बना देती है कि वह चीज़ बेकार की चीज बन जाती है, दुःखदायी बन जाती है। मन बार-बार दोहराता है कि अमुक ने तुम्हारा अपमान किया। यह भी एक तरह की आसक्ति है। वस्तुतः यह आसक्ति का संसार है।
आप
अगर उसे वहीं का वहीं छोड़ दें तो बात खत्म हो जाय। आपने उस पर दबाव डालना शुरू कर
दिया कि किसी ने ऐसा क्यों कहा? किसी
ने ऐसा क्यों किया? आप बार-बार उसे याद करेंगे
तो उसका प्रभाव आपके मस्तिष्क पर होता चला जायेगा। विचित्र बात तो यह है कि किसी
ने आपको एक गाली दी होगी, आपके मन पर चोट लग गई; मन
उसको बार-बार दोहरा रहा है, तो
होगा क्या? आप खुद ही अपने-आपको हजार बार गाली दे रहे
हो। उसने तो एक चोट लगाई वो तो चोट लगाकर चला गया, शायद भूल भी गया हो। अब आप बार-बार उस घाव को कुरेद रहे हो, उसे और गहरा कर रहे हो, और ज्यादा बढ़ा रहे हो। उसको बढ़ाते जाने का परिणाम यह है कि आप उस नरक में, उसकी अग्नि में हर समय जल रहे हो। भगवान कहते हैं कि इससे
बाहर निकलो, योगस्थ हो जाओ, योगी बनकर चलो, अनासक्त
होकर के चलो। बन्धुओं! यही उपाय है और यही चिन्ताओं और समस्याओं का निदान भी।
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