Param pujye Shri Sudhanshuji Maharaj, born on May2, 1955,commonly referred to as Maharaj Shri or Gurushri by his worldwide followers is a preacher from India. He founded Vishaw Jagriti Mission in 1991 which aims to performing spriritualactivities such as Sewa,Simran, Swadhaye, Satsang, Sadhna. Under his wise and well-recognised leadership, the Mission has over 80 branches, 22 Ashrams(old age homes) and 3 charitable Hospitals. throughout the world.

परम पूज्य श्री सुधांशुजी महाराज प्रवचांश

4) मन की ज़्यादा न सुनें, अन्तरात्मा की आवाज़ सुनना है हितकर- श्री सुधांशु जी महाराज

आपके विचारों मेंमस्तिष्क मेंस्मृतियों में न जाने क्या-क्या भरा हुआ हैअक्सर वह सब चलने लग जाता हैजो बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है। ये जो मन है  नाइसकी आदत है पृष्ठ-पीसन करनापीसे हुए को बार-बार पीसना। मन पर अगर कोई चोट लगी हुई हो तो आप देखेंगे कि मन बार-बार उसी को याद दिलाएगा,  वह उसे बार-बार दोहराएगा। कोई चीज आपको परेशान कर रही हो तो आप देखनामन उसी को आपके सामने लाकर के रखेगा।


चक्की में एक बार पीस दिया जाये तो आदमी कहता कि चलो पिस गया और आटा तैयार हो गयालेकिन हमारा मन तो ऐसा विचित्र है कि जिस आटे को पीस  लियाउसी को दुबारा फिर पीसेगा।फिर रुकेगा नहींतीसरी बार फिर पीसेगाएक बार नहीं दो बार नहींतीन बार नहींसौ बार नहींवह हजार बार उसी को पीसेगा।  मन की यह पिसाई जो है नाउस वस्तु का ऐसा रूप बना देती है कि वह चीज़ बेकार की चीज बन जाती हैदुःखदायी बन जाती है। मन बार-बार दोहराता है कि  अमुक ने तुम्हारा अपमान किया। यह भी एक तरह की आसक्ति है। वस्तुतः यह आसक्ति का संसार है।
 



आप अगर उसे वहीं का वहीं छोड़ दें तो बात खत्म हो जाय। आपने उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि किसी ने ऐसा क्यों कहाकिसी ने ऐसा क्यों किया?  आप बार-बार उसे याद करेंगे तो उसका प्रभाव आपके मस्तिष्क पर होता चला जायेगा। विचित्र बात तो यह है कि किसी ने आपको एक गाली दी होगीआपके मन  पर चोट लग गईमन उसको बार-बार दोहरा रहा हैतो होगा क्याआप खुद ही अपने-आपको हजार बार गाली दे रहे हो। उसने तो एक चोट लगाई वो तो चोट लगाकर चला गयाशायद भूल भी गया हो। अब आप बार-बार उस घाव को कुरेद रहे होउसे और गहरा कर रहे होऔर ज्यादा बढ़ा रहे हो। उसको बढ़ाते जाने का  परिणाम यह है कि आप उस नरक मेंउसकी अग्नि में हर समय जल रहे हो। भगवान कहते हैं कि इससे बाहर निकलोयोगस्थ हो जाओयोगी बनकर चलो,  अनासक्त होकर के चलो। बन्धुओं! यही उपाय है और यही चिन्ताओं और समस्याओं का निदान भी।










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