जीना उसी का
सार्थक है जीवन उसी का उत्तम है और वही मनुष्य
श्रेष्टता को पाता है जिसके मन में प्रेम करुणा, दया
व भक्ति हो । जिस मन ,आत्मा में उक्त सभी भाव प्रकट हो जाए तो
इन सभी को मिलाकर एक नया रूप साकार हो जाता है जिसे सेवा कहते है। धर्म पुण्ये
करते है, धर्म करते है, सेवा करते है, बच्चों में भी आदत डालिए.अपने हाथ से सेवा
करना सीखो, अपने हाथ से देना सीखो. अपने हाथ से सेवा करना सीखो, अपने हाथ को इस
तरह का बनाओ की किसी की सहायता की तुम्हे आवश्यकता न पड़े . तुम दाता बनकर दुनिया
में जियो अपना सामर्थ्य जगाओ.
अपने घर को मंदिर का वातावरण दीजिये. मंदिर में रहने और भगवान् की आराधना
करने वाले व्यक्ति पर भगवान् की असीम कृपा अपने- आप होती रहती है लेकिन मंदिर में
रहना बड़ी बात नहीं है. मंदिर को अपने अंदर रखना बड़ी बात है. सवेरे सवेरे जब आप
भगवान् के पूजन के लिए मंदिर जाते है तो एक नियम का पालन करे. घर में निकलें तो
इष्टदेव का मन ही मन में जाप करते हुए जाये. रास्ते में कोई मिले, प्रणाम करे, नमन
करे तो आप हाथ जोड़ कर नमन कर दे और सर झुकाते हुए आगे बढ़ जाए. रास्ते में कोई
मिले, प्रणाम करे, नमन करे तो आप हाथ जोड़ कर नमन कर दें और सर झुकाते हुए आगे बढ़
जाए.
भगवान् की आराधना
करके जब आप लौटे तो उस खुशबू को, उस सुगंध को, उस शांति को, उस भजन-पूजन की पवित्रता
को अपने आप लेकर आ रहे है , उसे उसी तरह से लेकर घर में पहुंचिए . आप रास्ते में
किसी से भी सांसारिक बातें न करिए. आपने थोडा सा ऐसा अभ्यास किया तो ऐसी- ऐसी
प्रक्रियां आपके जीवन में घटेंगी की आप आश्चर्यचकित रह जायेंगे. जो अपने भगवान् का
चिंतन करता है उसकी चिंता तो भगवान् करेगा. उसका ध्यान मालिक करेगा. उसके बिगड़े
काम बनेंगे. उसमें पुरषार्थ की शक्ति अपने आप आएगी.
सद्गुरु मेरे कलम हाथ तेरे की सोहने सोहने लेख लिख दे .
की प्यारे प्यारे लेख लिख दे .
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