वेद में श्रद्धा की महिमा बताते हुए कहा गया 'श्रद्धया सत्यमवाप्यते''श्रद्धया विन्दते वसुः''श्रद्धया अग्निं समिध्यते' अर्थात् श्रद्धा से ही जीवन का सत्य जाना जा सकता है। श्रद्धा से ही धन की प्राप्ति होती है। श्रद्धा से ही व्यक्ति जागृत होता है। वेद में अन्यत्र भी श्रद्धा की उपासना। के लिए कहा गया है-'श्रद्धां प्रातहवामहे' अर्थात् प्रात:काल श्रद्धा का आवाहन करें। श्रद्धा ही देवताओं को देवत्व दिलाती है।
नीतिकारों ने कहा कि मंत्र में, गुरु में, देवता में, हमारी जैसी श्रद्धा हो है। वैसा ही फल हमें प्राप्त होता है। इसलिए जीवन में चतुर्दिक सफल के लिए अपने प्रेरक सद्गुरु के प्रति गहरी श्रद्धा परम आवश्यक है।
अगर आपके भीतर किसी मार्गदर्शक सद्गुरु क प्रति श्रद्धा है तो उसके प्रति अट्ट विश्वास जमाने के लिए संकल्प कीजिए। जो संकल्प आपन अग्नि को साक्षी रखकर ले लिया, फिर चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए। आप अपना वचन नहीं तोड़ेंगे, क्योंकि आपने ऊर्जा के प्रतीक अग्नि को साक्षी बना लिया है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में संदेश दिया है-'श्रद्धावान लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः' अर्थात् ज्ञान की प्राप्ति उसी को होती है जो श्रद्धावान है, तत्पर है और इन्द्रियों पर नियंत्रण करने वाला है।
भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञान प्राप्ति के लिए सद्गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण का संदेश देते हुए कहा है
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्षयन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।
अर्थात् उस ज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भलीभाँति दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्मतत्व को भलीभांति जाननेवाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे।
सभी योनियों में मानव योनि सर्वश्रेष्ठ योनि है। अपने श्रेष्ठ कर्मों के द्वारा व्यक्ति अपना आत्मकल्याण इसी जन्म में कर सकता है। इसके लिए परमात्मा में, सद्गुरु में और अपने कर्म के प्रति एकनिष्ठ श्रद्धा परम आवश्यक है। इसी से आत्मकल्याण सम्भव है।
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