भगवान् श्री कृष्ण ने गीता के माध्यम से सबसे पहले यह अनोखी कृपा संसार को दी. सभी ग्रंथों में शायद भागने की बात कही गई होगी. लेकिन भगवान् श्री कृष्ण ने ऐसा कोई नारा नहीं दिया; उन्होंने कहा है की जीवन एक संघर्ष है, एक चुनौती है, एक परीक्षास्थल है, रणक्षेत्र है इसका सामना करना होगा, परीक्षा देनी ही होगी; संघर्ष तब तक रहेगा जब तक साँस चलेगा, इसलिए संघर्ष से भागना नहीं, स्थिर होकर उसका सामना करना.
गीता को इसलिए भी पढना,चिंतन करना क्योंकि यह हमें कर्तव्य-बोध कराती है. जीवन के हर क्षेत्र में ठीक ढंग से चलने का रास्ता गीता हमें देती है. जीवन में कायरता में वीरता का सन्देश गीता है कायर, डरपोक बनकर भागो नहीं, अपनी जिम्मेदारियां तुम्हे उठानी पड़ेगी, तुम्हे अपने कर्तव्य निभाने पड़ेंगे, कर्तव्यपालन करते करते न जाने कितनी बार मन में निराशाएं आयेंगी, किन्तु निराश मत होना, मन को फिर से तैयार करना होगा क्योंकि तुम्हारा भाग्य बदलने के लिए कोई और आने वाला नहीं. विषाद से प्रसाद की ओर चलने का मार्ग गीता है, इसीलिए प्रथम अध्याय को ही विषाद योग कहा है की आकर खड़े हो गये विषाद में, दुःख में, संताप में, निराशा में, अब विषाद से प्रसाद की ओर चलना है, प्रसन्नता की ओर चलना है.
भगवान् श्री कृष्ण के नामों में एक नाम योगेश्वर भी है. भगवान् कृष्ण हमें योगयुक्त होने का सन्देश दे रहे है, इसीलिए ये अर्जुन को भी कहते है अर्जुन तुम योगी बनो और यह भी भगवान् कृष्ण समझाते है की योग है क्या? सबमें समभाव रखना यही योग है. वैर नहीं, विरोध नहीं, निंदा नहीं, आलोचना नहीं. किसी के गुणगान गाने में लग जाएँ, क्योंकि हमें उससे कुछ लेना है और जिससे हमारे स्वार्थ की पूर्ति दृष्टिगत नहीं हो रही है उसका विरोध करने के लिए खड़े हो जायें. अर्जुनको यह योग सिखाने का मतलब क्या है कि फाटे हुए दिल सिल सके, टुटा हुआ मन जुड़ सके, प्यार के धागे में गांठ ना पढ़ जाय.