जो
परमात्मा शिव,अनंत,अव्यय,अज, निष्कल,व्योमकर,मनरहित सर्वत्र
सूक्ष्म है वह कैसे पूजा जा सकता है? अतएव साक्षात शिव ही
गुरु रुप का आश्रय करके भक्ति द्वारा पूजित होता है और भुक्ति तथा मुक्ति देता
है।मेरी शिव रूप आकृति मनुष्य के दृस्टि गोचर नहीं हो सकती, इसीलिए
गुरु रूप को धारण करके मैं ही शिष्यों की सर्वदा रक्षा करता हूं।
साक्षात पर शिव स्वयं मनुष्य रूप से अपने शिष्यों पर अनुग्रह करने के लिए अपने को छिपाकर पृथ्वी पर विचरते हैं वही परम शिव,निराकार होते हुए भी,सदभक्तो की रक्षा के लिए गुरु रुप साकार बनकर कृपानिधि संसारी के सदृश्य चेष्टा करते हुए दिख पड़ते हैं।पाप कर्म वाले लोग गुरु को मनुष्य रूप में देखते हैं,परंतु पुण्य कर्म वाले लोग श्री गुरु को शिव रूप में देखते हैं।
साक्षात परम तत्व स्वरुप श्री गुरु को नेत्र के सामने प्रत्यक्ष रहते हुए भी भाग्यहीन मनुष्य नहीं देखते, जैसे अंधे लोग उदय सूर्य को नहीं देखते।अतएव यह सत्य है कि गुरु ही साक्षात सदाशिव रूप है, इसमें कोई संदेह नहीं है। क्योंकि यदि गुरु ही सदा शिव रूप ना होते तो भुक्ति और मुक्ति कौन दे सकता? इसलिए सदा शिव और श्री गुरुदेव इन दोनों में कोई भेद नहीं है, परंतु जो लोग भेज देखते हैं वह पापी हैं।
साक्षात पर शिव स्वयं मनुष्य रूप से अपने शिष्यों पर अनुग्रह करने के लिए अपने को छिपाकर पृथ्वी पर विचरते हैं वही परम शिव,निराकार होते हुए भी,सदभक्तो की रक्षा के लिए गुरु रुप साकार बनकर कृपानिधि संसारी के सदृश्य चेष्टा करते हुए दिख पड़ते हैं।पाप कर्म वाले लोग गुरु को मनुष्य रूप में देखते हैं,परंतु पुण्य कर्म वाले लोग श्री गुरु को शिव रूप में देखते हैं।
साक्षात परम तत्व स्वरुप श्री गुरु को नेत्र के सामने प्रत्यक्ष रहते हुए भी भाग्यहीन मनुष्य नहीं देखते, जैसे अंधे लोग उदय सूर्य को नहीं देखते।अतएव यह सत्य है कि गुरु ही साक्षात सदाशिव रूप है, इसमें कोई संदेह नहीं है। क्योंकि यदि गुरु ही सदा शिव रूप ना होते तो भुक्ति और मुक्ति कौन दे सकता? इसलिए सदा शिव और श्री गुरुदेव इन दोनों में कोई भेद नहीं है, परंतु जो लोग भेज देखते हैं वह पापी हैं।
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