Param pujye Shri Sudhanshuji Maharaj, born on May2, 1955,commonly referred to as Maharaj Shri or Gurushri by his worldwide followers is a preacher from India. He founded Vishaw Jagriti Mission in 1991 which aims to performing spriritualactivities such as Sewa,Simran, Swadhaye, Satsang, Sadhna. Under his wise and well-recognised leadership, the Mission has over 80 branches, 22 Ashrams(old age homes) and 3 charitable Hospitals. throughout the world.

परम पूज्य श्री सुधांशुजी महाराज प्रवचांश

44) आत्मज्ञान से आसक्ति का त्याग- श्री सुधांशुजी महाराज


अष्टावक्र ने राजा जनक को उपदेश दिया, हे राजन! संसार एक रंगमंच है और सभी जीव इस रंगमंच पर अपना-अपना अभिनय करने के लिए खड़े हुए है, लेकिन माया से ग्रसित होकर अपना स्वरुप नहीं जानते. अपने स्वरूप को पहचानो; क्योंकि तुम एक चैतन्य हो, जो तत्व तुम्हारे अंदर काम कर रहा है, वही तुम हो. शरीर के मिट जाने के बाद भी तुम नहीं मिटते. तुम्हे धन मिल जाए तो तुम धनी नही होते और तुम्हारा धन छीन लिया जाए तो तुम निर्धन नहीं हो जाते. गरीबी और अमीरी ये आत्मा के गुण नहीं है. इस संसार में कुछ पदार्थ मिलते ही जिनमें आदमी अहंकार में आता है और अपने स्वरूप को जानता हुआ इंसान किसी चीज़ के बिछड़ जाने से दुखी नहीं होता. इसलिए राजन! तुम राजा भी हो तो राजा नहीं हो, क्योंकि आत्मा न राजा है न रंक है, न ये दीन है न दरिद्र , न ये बलवान है न निर्बल. यह अपने आप में ही एक स्वरूप है चैतन्य रूप. इसकी जो चेतनता है उसे संसार में कोई शस्त्र नहीं काट सकता , हवा इसे सुखा नहीं सकती, आग इसे जला नहीं सकती, पानी इसे गिला नहीं कर सकता. 



जो मिटाता है, मरता है, जिसके लिए इंसान मोह के कारण रोता है, वह तो यह शरीर है, लेकिन शरीर एक रथ की भांति है. हम सभी जितने भी जीव है है इस रथ पर मालिक बनकर बैठे हुए है. पर कभी- कभी हम अपने आपको रथ समझने लग जाते है तो दुखी होते है. हमारी यात्रा संसार की यात्रा है. संसार में हमारा रथ तेजी से दौड़ सके और हम अपनी मंजिल तक पहुँच सके, यह कार्य तो हमे ही करना है और अपना शरीर को भी ठीक रखना है. शरीर तो भी स्वस्थ रखना है लेकिन शरीर ही मैं हूँ यह नहीं मानता. यह तो एक स्वरुप मुझे आज मिला, आगे फिर दूसरा शरीर मिल जाएगा. आत्मा को न जाने कितने शरीर मिलते है . जिस प्रकार से कोई रस्सी को अँधेरे में देखकर अनुभव करने लग जाए की सांप है, ऐसे तुम जिन पदार्थों के द्वारा सुख पाने की कोशिश कर रहे हो वह तो केवल अज्ञान और अँधेरे में दिखाई देने वाले सर्प की तरह से है, जिनसे डरकर हम लोग भाग रहे है. हमे समझना चाहिए की वास्तव में स्थिति यह नही है , जिनमे हम दौड़ रहे है. 
मेरे दाता के दरबार में सब लोगों का खता 
जो कोई जैसी करनी करता वैसा ही फल पाता  

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