उड़ते नीलगगन में पंछी
गाते मधुर तराना,
पखों में भर नई उमंगें
अम्बर तक उड़ जाना.
दीन और दुखियों की सेवा
यह कर्तव्य निभाना,
मूक हमारे पशु बेचारे
माता-पिता बहिन और भाई
रिश्ते भूल न जाना,
जिस माटी में जन्म लिया है
उसका तिलक लगाना.
गुरुओं की वाणी सिखलाती
सच्ची राह दिखाना
जिस रास्ते पर ज्ञानी चलते
पंथ वही अपनाना.
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