ब्रह्मानंद परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्।
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादि लक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधी साक्षी भूतम्।
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि॥
जो स्वयं ब्रह्मानन्द स्वरूप हैं, परम सुख देने वाले हैं, ज्ञान की मूर्ति हैं, हर्ष-शोक आदि द्वन्द्वों से रहित हैं, आकाश के समान निर्लेप हैं, 'तत्वमसि' आदि महावाक्यों से जाने जा सकें, ऐसे गूढ़ हैं, नित्य हैं, विमल हैं, अचल हैं, निरन्तर साक्षीरूप हैं, कल्पना में जिनका स्वरूप नहीं समा सके ऐसे सत्व-रज-तम तीनों गुणों से परे हैं सद्गुरु के चरणों में नमन है।
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
अज्ञानरूपी अंधकार के कारण मनुष्य यथार्थ से अनभिज्ञ रहता है,
जिससे वह दु:खी होता है। सद्गुरु ज्ञानरूपी अंजन देकर शिष्य के विवेकरूपी दृष्टि को जागृत करते हैं, ऐसे सद्गुरु को नमन है।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
परमात्मा जो अखण्ड है, मण्डलाकार ब्रह्माण्ड में समाया हुआ है, जो चर-अचर में व्याप्त है उस परमतत्त्व का दर्शन जो करवाता है उस परमगुरु को नमन है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु और गुरु ही भगवान शिव हैं।
गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं, उन गुरुदेव को नमस्कार है।
गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं, उन गुरुदेव को नमस्कार है।
अखण्डानन्दबोधाय शिष्यसन्तापहारिणे।
सच्चिदानन्दरूपाय तस्मै श्री गुरवे नमः॥
परमात्मा के शाश्वत आनन्द का ज्ञान कराने वाले, शिष्यों के दुःख को दूर करने वाले, सत्-चित्-आनन्द स्वरूप गुरुदेव को नमन है।
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