आचार्य वह है, जो आचार को शिष्टता को ग्रहण कराता है.
जो जीवन में महान आचरण देता है. जिसका संग करने से भक्ति का रंग चढ़े , योग का रंग
चढ़े जिसके प्रभाव में व्यक्ति संसार की महामाया से निपटने के लिए तैयार हो जाए. जो
व्यक्ति में झगड़ों, क्लेश ,कष्ट से ऊपर उठने की क्षमता उत्पन्न कर दे, वह गुरु है.
गुरु की एक परिभाषा और दी गई है – जो बुद्धि में विशेषता पैदा कर दे, वह गुरु है. एक
बुद्धि धन की कामना करती है. एक बुद्धि वासना की इच्छा करती है, एक बुद्धि झगड़ों
में रुचि रखती है, एक बुद्धि मात्र अपना ही भला सोचती है. लेकिन इन सारी बुद्धियों
को जो सद्बुद्धि प्रदान कर दे, उसे आचार्य कहेंगे. व्यक्ति अपना भी कल्याण करे और
दूसरों का भी करे. व्यक्ति अपनी सात पीढ़ियों को ही नहीं, 21 पीढियां तारने वाला बन
जाए. ऐसी शक्ति जो प्रदान करता है, वही आचार्य है, गुरु है. इसलिए गुरु का बड़ा
महत्व है. गुरु के सान्धिये में जाने से शक्ति आती है. जीवन की दिशा बदल जाती है इसलिए कहा जाता है की जीवन
में किसी को गुरु बनना अत्यंत आवश्यक है. गुरु वही है, जो ब्रह्मनिष्ठ हो,
परमात्मा में डूबा हुआ हो. जो संसार से भागना न सिखाये ,संसार मं जागना सिखा दे. सच्चिदानंद
परमात्मा का जो धाम है, वही धाम हमारा है. विषय-वासना के तस्करों ने हमें संसार
में उठाकर फेंक दिया और हाथ-पावं बाँध दिए. विवेकरूपी आँखों को बंधन जकड़े हुए है .
हम संसार के गहन वन में पड़े हुए,एक जन्म से नहीं, अनेक जन्मों से तड़प रहे है. कोई भी ऐसा नही,जो हमारी आँखों की पट्टी खोल दे .हमे वह मार्ग बता दे, जिस पर चल कर हम किसी ग्यानी गुरु तक पहुँच जाएँ. वह गुरु जन्म –जन्मान्तरों के दुःख को तोड़ने का रास्ता बता दे और अपने धाम पर पहुंचे का सही मार्ग दिखा दे. जो भवसागर से पार निकलने का मार्ग हमे बताता है, उस गुरु कहा जाता है.
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